आपातकालीन प्रावधान

संदर्भ
हाल ही में मणिपुर में हुई हिंसा ने केंद्र-राज्य संबंधों और भारत में आपातकालीन प्रावधानों के उपयोग पर बहस को फिर से जीवित कर दिया है। यह स्थिति भारत की संघीय संरचना और संकटों से निपटने के लिए बनाए गए संवैधानिक तंत्र की जटिलताओं और चुनौतियों को रेखांकित करती है।

भारत में संघीय ढांचा
संघीय संरचना: भारत एक संघीय प्रणाली के रूप में संचालित होता है, जिसमें केंद्र और राज्यों में अलग-अलग सरकारें होती हैं। इस ढांचे को विभिन्न स्तरों की सरकारों के बीच शक्तियों और जिम्मेदारियों को संतुलित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
सातवीं अनुसूची: भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण को तीन सूचियों के माध्यम से परिभाषित करती है: संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची।
संघ सूची: इसमें राष्ट्रीय महत्व के विषय जैसे रक्षा, विदेश मामले, और परमाणु ऊर्जा शामिल हैं।
राज्य सूची: इसमें पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य, और कृषि जैसे स्थानीय या राज्य महत्व के विषय आते हैं।
समवर्ती सूची: इसमें शिक्षा, विवाह, और दिवालियापन जैसे केंद्र और राज्यों दोनों के लिए साझा रुचि के विषय होते हैं।
राज्य की जिम्मेदारी: कानून व्यवस्था बनाए रखना मुख्य रूप से राज्य सरकारों का कार्यक्षेत्र है। उदाहरण के लिए, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था राज्य विषय हैं, अर्थात प्रत्येक राज्य की अपनी पुलिस बल और सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित कानून होते हैं।

संविधान में आपातकालीन प्रावधान
भाग XVIII: आपातकालीन प्रावधान संविधान के भाग XVIII में उल्लिखित हैं, जो असाधारण परिस्थितियों से निपटने के लिए ढांचा प्रदान करते हैं।
अनुच्छेद 355: केंद्र पर यह कर्तव्य थोपता है कि वह प्रत्येक राज्य को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाए। यह सुनिश्चित करता है कि राज्य सरकारें संविधान के अनुसार कार्य करें।
उदाहरण: 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान केंद्र ने राज्य सरकारों की सहायता के लिए अनुच्छेद 355 लागू किया था।
अनुच्छेद 356: यदि किसी राज्य की सरकार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार कार्य करने में असमर्थ हो, तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
उदाहरण: 2018 में जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार के गिरने के बाद राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।

अन्य देशों के साथ तुलना
संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिकी संघीय प्रणाली में राज्यों में संघीय हस्तक्षेप के तंत्र शामिल हैं, लेकिन राज्य सरकारों को हटाने के लिए कोई प्रावधान नहीं है। पोसी कोमिटाटस अधिनियम संघीय सैन्य कर्मियों के उपयोग को राज्यों के भीतर घरेलू नीतियों को लागू करने के लिए सीमित करता है।
उदाहरण: 2005 में हरिकेन कैटरीना के दौरान, संघीय हस्तक्षेप सीमित था और राज्य से सहायता अनुरोध की आवश्यकता थी।
ऑस्ट्रेलिया: संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह, ऑस्ट्रेलिया की संघीय प्रणाली में राज्यों की रक्षा के लिए संघीय हस्तक्षेप की अनुमति है, लेकिन राज्य सरकारों को हटाने के प्रावधान शामिल नहीं हैं।
उदाहरण: 2019-2020 की बुशफायर आपदा के दौरान ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने राज्यों को व्यापक समर्थन प्रदान किया, लेकिन राज्य सरकारें अपने-अपने क्षेत्रों में नियंत्रण में रहीं।

डॉ. बी.आर. आंबेडकर का दृष्टिकोण
अनुच्छेद 355 के लिए औचित्य: डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने बताया कि अनुच्छेद 355 इस बात को सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था कि अनुच्छेद 356 के तहत किसी राज्य के प्रशासन में केंद्र का हस्तक्षेप उचित और संवैधानिक रूप से अनिवार्य हो।
संघीय शक्ति पर नियंत्रण: यह प्रावधान अनुच्छेद 356 के मनमाने या अनधिकृत उपयोग को रोकने के लिए है, संघीय ढांचे को संरक्षित करने के लिए एक नियंत्रण बनाए रखता है।
उदाहरण: आंबेडकर की दृष्टि यह थी कि संभावित दुरुपयोग के खिलाफ एक सुरक्षा तंत्र बनाया जाए, जिससे संघीय हस्तक्षेप अंतिम उपाय के रूप में ही किया जा सके।

मुद्दे और चिंताएं
अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग: इस आशा के बावजूद कि अनुच्छेद 355 और 356 का उपयोग केवल गंभीर मामलों में किया जाएगा, अनुच्छेद 356 का कई बार निर्वाचित राज्य सरकारों को बर्खास्त करने के लिए दुरुपयोग किया गया है, जो संवैधानिक सिद्धांतों और संघवाद को कमजोर करता है।
उदाहरण: 1977 में, जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता में आने के बाद नौ कांग्रेस शासित राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया।
उदाहरण: 1980 में, इंदिरा गांधी की सरकार ने सत्ता में वापस आने के बाद नौ गैर-कांग्रेसी राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया।

न्यायिक निर्णय
एस.आर. बोम्मई केस (1994): इसने अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग पर रोक लगाई और कहा कि इसका उपयोग केवल संवैधानिक संकटों के लिए किया जाना चाहिए, साधारण कानून व्यवस्था के मुद्दों के लिए नहीं। इस प्रावधान को न्यायिक समीक्षा के अधीन रखा गया।
उदाहरण: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक, मेघालय और नागालैंड में बर्खास्त की गई राज्य सरकारों को बहाल किया और यह स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 356 का उपयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
अनुच्छेद 355 का विस्तार: सुप्रीम कोर्ट ने समय के साथ अनुच्छेद 355 की व्याख्या को व्यापक किया है, जिससे केंद्र को राज्यों की रक्षा के लिए और संवैधानिक शासन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने की अनुमति मिलती है।
उदाहरण: 1998 के नागा पीपल्स मूवमेंट केस में, कोर्ट ने राज्य को आंतरिक अशांति से बचाने के लिए केंद्र के हस्तक्षेप को सही ठहराया।

आयोगों की सिफारिशें
सरकारिया आयोग (1987): अनुच्छेद 356 का उपयोग बहुत कम और केवल अंतिम उपाय के रूप में किया जाना चाहिए। इसमें सहयोगात्मक संघवाद पर जोर दिया गया और केंद्र-राज्य समन्वय के लिए तंत्र सुझाए गए।
राष्ट्रीय आयोग (2002): अनुच्छेद 356 के उपयोग में संयम की आवश्यकता को दोहराया और संघीय संबंधों को मजबूत करने के उपाय सुझाए।
पंची आयोग (2010): अनुच्छेद 355 के तहत केंद्र पर यह कर्तव्य होता है कि वह राज्यों की रक्षा करे और इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए आवश्यक कार्रवाई की अनुमति देता है। साथ ही, अनुच्छेद 356 का उपयोग केवल अत्यधिक और अत्यावश्यक स्थितियों में ही किया जाना चाहिए।
उदाहरण: पंची आयोग ने केंद्र-राज्य मुद्दों को सक्रिय रूप से संबोधित करने के लिए एक स्थायी अंतर-राज्य परिषद की स्थापना की सिफारिश की।

निष्कर्ष
संतुलन साधना: आपातकालीन प्रावधान संवैधानिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं, लेकिन उनका केंद्र-राज्य संबंधों पर महत्वपूर्ण और जटिल प्रभाव पड़ता है।
मार्गदर्शक सिद्धांत: इनका उपयोग निष्पक्षता, आवश्यकता और संवैधानिक अखंडता के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होना चाहिए।
भविष्य की दिशा: इन प्रावधानों का संघीय सिद्धांतों के ढांचे के भीतर विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना राष्ट्र के लोकतांत्रिक और संघीय ताने-बाने को संरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

वर्तमान घटनाओं का संबंध
मणिपुर हिंसा: मणिपुर में हालिया हिंसा केंद्र-राज्य संबंधों में चल रही चुनौतियों और आंतरिक अशांति से निपटने में आपातकालीन प्रावधानों की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करती है। मणिपुर की स्थिति के प्रति केंद्र की प्रतिक्रिया राज्य की स्वायत्तता और संघीय हस्तक्षेप के बीच संतुलन का परीक्षण होगी।

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